समय के साथ मनुष्य ने बहुत उन्नति की है। मेरी समय पर कविता "मैं समय हूं " इसी विषय पर आधारित है। मनुष्य आदिमानव के जीवन से आगे बढ़ते -बढ़ते आज चाँद पर जा पहुंचा है। दूसरे ग्रहों पर जाने की तैयारी में हमेशा मशरूफ रहता है।
विकास और विनाश
मनुष्य को लगता है वह उत्तरोत्तर विकास कर रहा है। लेकिन यह भूल जाता है विकास और विनाश साथ -साथ चलते हैं। विकास का खामियाजा प्रकृति को भुगतना पड़ता है। प्रकृति जब परेशान होकर थोड़ी सी आंख तरेरती है तो मनुष्य सूखे पत्ते की भांति बिखर जाता है। विज्ञान और विकास धरे के धरे रह जाते हैं। प्रकृति समय के साथ मिलकर समय - समय पर मानव को सबक सिखाती रहती है।
- कवयित्री अनीता ध्यानी (अनि)
मैं समय हूं ,देख रहा हूँ।
वर्तमान की छाती पर
इतिहास लिख रहा हूँ।
विश्व को एक हथकड़ी में
बांध रहा हूँ।
मैं समय हूं, जाग रहा हूँ।
विज्ञान से आगे आगे
मैं भाग रहा हूँ।
साधना को साध रहा हूँ।
मैं समय हूं, सिसक रहा हूँ।
बिलख रहा हूँ लाशों पर
मजबूरों की मजबूरी पर।
कराहती आवाजों पर।
छटपटाती सांसों पर।
मैं समय हूं, बह रहा हूँ
निरन्तर अथक ।
ध्वस्त की मैंने सीमाएं सारी।
पड़ा मनु औलादों पर भारी।
तकनीकी,उपकरण,विज्ञान
देखी सबकी लाचारी।
क्षण क्षण पल पल
मानवता भी हारी।
मैं समय हूं प्रलयंकारी।
मेरे आगे बेबस
दुनिया सारी
प्रकृति का प्रतिकार ले रहा हूँ।
मैं समय हूं अट्हास कर रहा हूँ
वर्तमान की छाती पर
इतिहास लिख रहा हूँ।
मैं समय हूं।।।
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- ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न " (एडमिन / कवि )
मोह
मोह जाल में फँसकर हम, भूल गए जीवन की शान।
जन्मदाता मेरे पालनकर्ता तुम, हम छोड़ गये अपना भगवान।।
झरना बन बह-बह कर।
नदियाँ बन बह-बह कर।।
बादलों से बारिश बनकर।
बना लूंगा झील सागर।।
तिनके-तिनके में समाकर।
हवा की लहरों में जाकर।।
अम्बर को देख गुनगुनाकर।
बना लेंगे घर-परिवार।।
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2 Comments
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ReplyDeleteBahut hi gajab kavita .. aaj ke samay ke liye upyukt..
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