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हिन्दी कविता काली बर्फ | जंगलो को आग लगाने से बचाना हैं | कवयित्री अंजलि डुडेजा "अभिनव"

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काली बर्फ 

बहुत बुरा लगता है,
जब जंगल जलाए जाते हैं
धुंए का वो गुबार
बहुत बुरा लगता है।


कितने मासूम
जंगली जानवर
चिडियों के घोंसले
घोंसलों में नन्हें बच्चे
उस आग में जल जाते हैं
तब बहुत बुरा लगता है।

 बहुत बुरा लगता है,
 दावानल
जब वह नन्हे पेड़,
कोमल पौधे और
हरी घास लील जाता है।

आग का वो सैलाब,
छोड़ जाता है अपने पीछे
धुंए की गंध
जिस में मिली होती है
भुने हुए जीव जंतुओं के मांस की दुर्गंध।

बहुत बुरा लगता है
जला हुआ वह जंगल
झुलसे बुरांस और फ्यूंली
हवा के साथ उड़ती
काली काली राख
वह पहाड़
और उस पर नज़र आती
वह काली काली बरफ
बहुत बुरा लगता है। 

             -कवयित्री अंजलि डुडेजा "अभिनव"

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जीवन की गहराई में जाकर,
कुछ क्षण तुमसे बात करके,
पूछ लिया हाल सखा तुम्हारा।
बचपन के तुम सखा पाकर,
कसूर दिल का समझा करके,
गुजरा समय कवि असहाय तुम्हारा।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
"सखा" पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे -Click Here

मोह जाल में फँसकर हम ,
भूल गए जीवन की शान  । 
जन्मदाता मेरे पालनकर्ता तुम ,
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-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
माता -पिता पर सम्पूर्ण सारांश सहित पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें -Click Here

रिश्तों की सुन्दर डोर हाथ में,
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-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
रिश्ता पर सम्पूर्ण सारांश सहित पूरी कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें -Click Here

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जो जन्मी, बेटी थी वो
बहिन थी, पोती भी थी वो।
मां के गर्भ से ,
- कवयित्री अनीता ध्यानी 
"अजन्मी" पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें -Click Here

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-कवयित्री सुनीता ध्यानी 
"समय" पर पूरी कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें -Click Here

देवभूमि काव्य दर्शन ब्लॉग को उत्कर्ष कविताये / गजल प्रदान करने के लिए आप सभी कवि / कवयित्रियों का मैं दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।

                  - ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"(कवि /एडमिन )

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