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कोरोना पर कविता | बीमारी | महामारी | कवयित्री अनीता ध्यानी

दुनिया में करोना महामारी से पूरा जनजीवन अस्त -व्यस्त है। कवयित्री अनीता ध्यानी जी द्वारा रचित करोना पर सरल एवं सहज कविता "करोना से डरो मत तुम" समाज में फैले करोना महामारी के सन्दर्भ में अपवाद , करोना बीमारी से बचाव एवं नियम और धैर्य प्रस्तुत करती है। 

                                     -ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"


कोरोना पर कविता "कोरोना से डरो मत तुम"

कोरोना से डरो न तुम
मौत से पहले मरो न तुम।
स्वच्छ रखो घर ,
स्वच्छ तन मन।
हाथ धोने का करो जतन।

न्यूज टी.वी. पर लो तुम सुन 
न्यूज पेपर भी कर दो बंद।
परिवार संग जी लो जीवन
जन सम्पर्क कर लो कुछ कम।

सामाजिकता यूँ जारी रखना 
ऑनलाइन सम्पर्क बनाये रखना।
सात्विक सब भोजन करना 
तामसी भोजन तुम  त्यज देना ।

भीड़ भाड़ से रहना दूर
भूलकर भी न जाना टूर।
जहां तुमसे न धुल पाएं हाथ
सेनेटाइजर हरदम हो साथ।

अगर किसी को दो हौसला
एक मीटर का रखो फासला।
सुबह उठ दीर्घ श्वास भर
ईष्टदेव स्मरण करना।

नित कर्मों से निवृत हो
प्राणायाम फिर नित करना।
परिवार संग बैठ करना बातें सत
पार्टी,पिक्चर की सोचना  मत।

बोर अगर हों घर बैठे तो
पुस्तक निकाल तुम पढ़ना झट।
पढ़कर ज्ञान बढ़ेगा अपना
पुस्तक से मुंह मोड़ना मत।

नशीहत इतनी देता कोरोना
विषाणु है या शिक्षक कोरोना?
आध्यात्म की ओर बढ़ता इंसान
बेबस खड़ा दूर विज्ञान।।

            - कवयित्री अनीता ध्यानी (अनि)
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