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भाग मनखि भाग | कवयित्री सुनीता ध्यानी


भाग मनखि भाग। प्रकृति कुपित है या मनुष्य भ्रमित समझ नहीं आता.... सभ्यता विकास की होड़ में मनुष्य कुछ गलतियां कर बैठा है.. प्रकृति के खेलने-खुलने-पनपने के रास्तों में मानव सभ्यताओं ने रुकावटें पैदा की अब वह उनके डर से यहाँ-वहाँ भागता,बचता-बचाता फिर रहा है.. इस भाव के साथ ये पंक्तियाँ बस यूँ ही लिख दी थी... यह गेय रचना नहीं थी बस पंक्ति बद्ध कर दी कि बाघ, आग, बीमारी, अन्न-साग की दुर्लभता, ग्लेशियर पिघलने, छलार(समुद्री) तूफानों से बचने के लिए मनुष्य भागता फिर रहा है... मुंथा/ धरती से परे भी वह अपने लिए जगह खोजने को तैयार है... इसके लिए वह कई गुणा जोड़ भाग कर रहा है... पर अपने कर्मों की समीक्षा करने को तैयार नहीं.... उसने प्रकृति को नुकसान पहुंचा कर अपना जोग/ भाग्य रच दिया है... कहाँ तक भागेगा उसे जागना ही होगा...

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गौं मा  लग्यूँ बाघ

भाग मनखि भाग ।                                             

बणों मा लगीं आग,

भाग मनखि भाग ।

सैरुँ कुरोना फचाग,

भाग मनखि भाग ।                                             

सग्वड़्यों म नी साग,

भाग मनखि भाग ।

ह्यूँ रैड़ि कि उंद लाग,

भाग मनखि भाग ।

छलार कि उब्ब लफाग,

भाग मनखि भाग ।

द्यवतों कु बिगड़ि राग                           

भाग मनखि भाग ।

मुंथा छोड़ि ठौ' माँग                                       

भाग मनखि भाग ।

लेकि अपुणु जोगभाग                  

भाग मनखि भाग ।

कैर गुणा जोड़ भाग                           

भाग मनखि भाग ।

जनि लग नाक खचाग                           

भाग मनखि भाग ।

कखा कख खैलू थचाग                    

जाग मनखि जाग ।

न खा यखै वख भताग                     

जाग मनखि जाग ।

                                       - कवयित्री सुनीता ध्यानी

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-कवयित्री अनीता ध्यानी 

जीवन की गहराई में जाकर,
कुछ क्षण तुमसे बात करके,
पूछ लिया हाल सखा तुम्हारा।
बचपन के तुम सखा पाकर,
कसूर दिल का समझा करके,
गुजरा समय कवि असहाय तुम्हारा।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
"सखा" पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे -Click Here

मैं जन्मी पर, अजन्मी ही रही।
गर्भ में थी , गर्भ में ही रही।
जन्मी भी मैं, पर जन्मी ही नहीं।
जो जन्मी, बेटी थी वो
बहिन थी, पोती भी थी वो।
मां के गर्भ से ,
- कवयित्री अनीता ध्यानी 
"अजन्मी" पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें -Click Here

मोह जाल में फँसकर हम ,
भूल गए जीवन की शान  । 
जन्मदाता मेरे पालनकर्ता तुम ,
हम छोड़ गए अपना भगवान ।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
माता -पिता पर सम्पूर्ण सारांश सहित पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें -Click Here

उम्र के उस दौर में सफर कर रही हूँ।
जहाँ परिभाषा स्वयं की गढ़ रही हूँ।
बहुत देख चुकी जमाने की नजर से;
अपनी नजर से खुद को अब देख रही हूँ।
-कवयित्री सुनीता ध्यानी 
"समय" पर पूरी कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें -Click Here

रिश्तों की सुन्दर डोर हाथ में,
बन्धन एक सवेरा बना।
कदम बढ़ते गए जिनके हर रोज,
उनका मंजिल में नया डेरा बना।।
रिश्तों की मर्यादा को छूकर,
मंजिलों का स्वर्ण महल बना।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
रिश्ता पर सम्पूर्ण सारांश सहित पूरी कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें -Click Here

देवभूमि काव्य दर्शन ब्लॉग को उत्कर्ष कविताये / गजल प्रदान करने के लिए आप सभी कवि / कवयित्रियों का मैं दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।

                  - ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"(कवि /एडमिन )

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