संसार में सबसे बड़ा एवं पहला सत्य यह है कि धरती पर जीव -जन्तु , पशु - पक्षी या मनुष्य के जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु निश्चित है । धरती में प्रत्येक जीव एवं इन्शान मोह -माया में बंधा हुआ है। फलस्वरूप उसकी जीने की इच्छा बढ़ जाती है। सन्तुलन बनाये रखने के लिए , प्रकृति का नियम है कि एक निश्चित अथवा अनिश्चित समय अंतराल पर वह जीव-जन्तु अथवा इन्शान को मोह -माया के बन्धन से हमेशा के लिए मुक्त कर देती है। इसी विषय पर आधारित आज की पोस्ट में पढ़िए कवयित्री विमला रावत जी द्वारा लिखी गयी हिन्दी कविता "जिजीविषा"।
- ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"( कवि /एडमिन )
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जिजीविषा
जीने की है प्रबल इच्छा,
कि जीऊँ यहाँ हजारों साल।
पर होता नहीं है ऎसा,
जीने की यह प्रबल इच्छा,
धीरे -धीरे होती रहती है समाप्त,
जब दुःख़ के बादल मंडराते हैं,
और सुख की धूप खो जाती है,
तब आता है बस एक ही ख्याल....
कि काश मौत मुझे बुला लेती अपने पास,
पर जब पास आती दिखती है मौत,
तब उससे भी लगता है डर,
फिर जी करता है कि......
काश ये मौत टल जाती,
क्योंकि मुझे तो जीना है यहाँ हजारों साल।
-कवयित्री बिमला रावत
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जीवन -सफर की धूप -छाँव में
पग बढ़ा सुख- दुःख के साये में
बन पथिक निकल पड़े राह में हम
स्वर्णिम भविष्य बनाने की तलाश में।।
-कवयित्री बिमला रावत
"जीवन सफर" हिंदी कविता पढ़े -Click Here
जीवन की गहराई में जाकर,
कुछ क्षण तुमसे बात करके,
पूछ लिया हाल सखा तुम्हारा।
बचपन के तुम सखा पाकर,
कसूर दिल का समझा करके,
गुजरा समय कवि असहाय तुम्हारा।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
"सखा" पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे -Click Here
मैं जन्मी पर, अजन्मी ही रही।
गर्भ में थी , गर्भ में ही रही।
जन्मी भी मैं, पर जन्मी ही नहीं।
जो जन्मी, बेटी थी वो
बहिन थी, पोती भी थी वो।
मां के गर्भ से ,
- कवयित्री अनीता ध्यानी
"अजन्मी" पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें -Click Here
मोह जाल में फँसकर हम ,
भूल गए जीवन की शान ।
जन्मदाता मेरे पालनकर्ता तुम ,
हम छोड़ गए अपना भगवान ।।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
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उम्र के उस दौर में सफर कर रही हूँ।
जहाँ परिभाषा स्वयं की गढ़ रही हूँ।
बहुत देख चुकी जमाने की नजर से;
अपनी नजर से खुद को अब देख रही हूँ।
-कवयित्री सुनीता ध्यानी
"समय" पर पूरी कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें -Click Here
रिश्तों की सुन्दर डोर हाथ में,
बन्धन एक सवेरा बना।
कदम बढ़ते गए जिनके हर रोज,
उनका मंजिल में नया डेरा बना।।
रिश्तों की मर्यादा को छूकर,
मंजिलों का स्वर्ण महल बना।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
रिश्ता पर सम्पूर्ण सारांश सहित पूरी कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें -Click Here
देवभूमि काव्य दर्शन ब्लॉग को उत्कर्ष कविताये / गजल प्रदान करने के लिए आप सभी कवि / कवयित्रियों का मैं दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।
- ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"(कवि /एडमिन )
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1 Comments
बहुत बहुत आभार तडियाल सर जी आपका 🙏🙏
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