पुंगड़ी- पटळी | लघु कथा | लेखिका सरिता मैन्दोला
Subscribe Here
पुंगड़ाम जैकि सरुन जु पक गे छा वूं फ्वाळों तै अपणि खुचलि परै निकळिनी अर फिर थैला भोर द्या | विंक पुंगड़क ढीस पर कद्दुक बीज भी बुत्यां छ्या, त वा कद्दुक लगुलु लट्वळण बै ग्या, वींथैं वख दस,बारा कद्दू की दाणि मिल गेनि जुकि झेल प्याट छ्या |वीन कुछ बियां त बांट देनि गौंमा ही जौंक नि छ्या,अर कुछ बादमा कुणि रूड़ि मा रैलू बणाणाकुणि |
हर सीजन क साग सगोड़ी सरू करदी रैंदी छे,द्वी झणा लग्यां रैंदा छा,ब्च्चा खिजेंदा बि छ्या कि..." मां,पितजि क्या लग्यां रंदा तुम अराम कारा अब ,"...|त वू बुल्दा छा कि.." बबा अपणु घारक सग्वड़ि पत्वड़ि, पुंगड़ी -पटळिकु नाज- पाणि शुद्ध हुंद,अर अपणु ज्यु -जामा बि सै रैंदु कसरत हूणी रांदी,क्वी योग,जिम जाणक जर्वत नि पुड़दी |इसकोलक बच्चौं तै बि सरू कृषि व बाग बग्वनि क बारा म नयी नयी जानकारी देणी रैंदी
कब्बी दाना-सयणा क्वी सरू कु बुल्दा कि.." हे!मस्टर्याण ब्वारी, तुम तै भगवान क सब कुछ दियूं च, त क्यांकु करचुड़ा करचोड़ पर लग्यां रंदौ तुम द्वी झण?,.....,.... जैमा भण्ड्या हूंद त वैकि धीत नि भरेन्द,,,, यांमा तब सरू वूंथै समझांदी कि, "... पुंगड़ाकु काम करण से चुस्ती,फुर्ती बणी रैंद, हत्त,खुट्टा बि ठीक रंदन,तज्जु साग -पात बि मिलणी लग्यूं रैंदु,. ....त नखुरु क्या च?,..अर "गात क्या जुगाण,एक दिन यू ज्यूंरन ही खाण,"
तब लोग बुल्दा छा कि.. "हां ब्वारी बुनी त तू ठीकई छे पर अजकाल क मतण्यां लोग,परै ", रौं सुक्खी, मोर भुक्खी वळु आण खूब फबणूच,"|
सरू,"....पर जु हम जना नौकिरि चाकिरि वळा पुंगड़क काम करदां त लोग बथा बि बणदिन,पर हम त ज्योरौ वूंकि बातुं पर ध्यान नि दींदा ,पुंगड़ोंक काम कनमा क्यांकि शरम,"|
"एक दिन सबून ़़़़़ये माटु मा ही मिल जाण,"..........|
यह भी देखिए -
लाल रंग की चिड़िया ,
लगती कितनी सुन्दर।
मधुर गाना वो गाती है।
उड़ना उसका सपना है।
-बाल कवयित्री प्रियांशी (रा.उ.प्रा.वि. गूमखाल )
"लाल रंग की चिड़िया" बाल कविता पढ़े -Click
यह भी पढ़े -
जीवन -सफर की धूप -छाँव में
पग बढ़ा सुख- दुःख के साये में
बन पथिक निकल पड़े राह में हम
स्वर्णिम भविष्य बनाने की तलाश में।।
-कवयित्री बिमला रावत
"जीवन सफर" हिंदी कविता पढ़े -Click Here
जीवन की गहराई में जाकर,
कुछ क्षण तुमसे बात करके,
पूछ लिया हाल सखा तुम्हारा।
बचपन के तुम सखा पाकर,
कसूर दिल का समझा करके,
गुजरा समय कवि असहाय तुम्हारा।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
"सखा" पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे -Click Here
मैं जन्मी पर, अजन्मी ही रही।
गर्भ में थी , गर्भ में ही रही।
जन्मी भी मैं, पर जन्मी ही नहीं।
जो जन्मी, बेटी थी वो
बहिन थी, पोती भी थी वो।
मां के गर्भ से ,
- कवयित्री अनीता ध्यानी
"अजन्मी" पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें -Click Here
मोह जाल में फँसकर हम ,
भूल गए जीवन की शान ।
जन्मदाता मेरे पालनकर्ता तुम ,
हम छोड़ गए अपना भगवान ।।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
माता -पिता पर सम्पूर्ण सारांश सहित पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें -Click Here
उम्र के उस दौर में सफर कर रही हूँ।
जहाँ परिभाषा स्वयं की गढ़ रही हूँ।
बहुत देख चुकी जमाने की नजर से;
अपनी नजर से खुद को अब देख रही हूँ।
-कवयित्री सुनीता ध्यानी
"समय" पर पूरी कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें -Click Here
रिश्तों की सुन्दर डोर हाथ में,
बन्धन एक सवेरा बना।
कदम बढ़ते गए जिनके हर रोज,
उनका मंजिल में नया डेरा बना।।
रिश्तों की मर्यादा को छूकर,
मंजिलों का स्वर्ण महल बना।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
रिश्ता पर सम्पूर्ण सारांश सहित पूरी कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें -Click Here
देवभूमि काव्य दर्शन ब्लॉग को उत्कर्ष कविताये / गजल प्रदान करने के लिए आप सभी कवि / कवयित्रियों का मैं दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।
- ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"(कवि /एडमिन )
सम्बन्ध
इस कविता एवं पोस्ट का पूर्णतः कॉपी राइट किया जा चुका है। कविता एवं पोस्ट पूर्णतः कॉपी राइट एक्ट "©®" के अधीन है।
www.myhindipoetry.com - Click Here आधुनिक कविताओं का ब्लॉग सम्पूर्ण सारांश सहित विजिट अवश्य करें।
0 Comments