प्रस्तुत कविता "प्रभु ज्ञान" जिसमें परम परमात्मा के स्वरूप को समझा गया है कि मैं किस प्रकार से उस परम परमात्मा को इस धरती, आकाश और ब्रह्मांड में देख पाती हूं, चेतन अचेतन में समझ पाती हूं, और संसार की सभी चीजों और जीव जंतुओं में उस प्रभु को महसूस कर पाती हूं। सर्वशक्तिमान प्रभु हर प्राणी की आत्मा में बसता है और संवरता है। उस सर्वशक्तिमान का सदैव स्मरण , पूजन ,और नमन है।
प्रभु ज्ञान
धरती के इस छोर से,
नभ के उस छोर तक,
अखिल विश्व ब्रह्मांड की,
फैली जो दस दिशाओं में,
असंख्य तेज पुंज रश्मियां,
बंद आंखों से भी जिनका,
मुझे हर समय भान है,
कि हे असीम सत्ता......,
तेरे सत्य का मुझे ज्ञान है।
जो चेतन और अचेतन में,
भिन्न रंग-रूप आकार लिए,
भोर के संगीत में जो,
सांझ के गीत में जो,
ऋतुओं के नृत्य में जो,
दिन ,अंधेरा, रात बनकर,
पुनः बसंत सा जो खिलता है।
कि हे असीम सत्ता ....,
तेरे सत्य का मुझे ज्ञान है।
सूर्य, तारे और चंद्रमा,
नदी पहाड़ और जंगल,
फूल कीट, पशु पक्षी ,
और समस्त मानव जाति,
सभी के आत्म बसता।
समय संग संवरता है,
कर्म, धर्म, पाप- पुण्य,
है सभी आपको समर्पित,
की हे असीम सत्ता.....,
मुझे हर समय तेरा भान है,
तेरे सत्य का मुझे ज्ञान है ।
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